Monday, 9 July 2018

स्वभाव (उनके लिए जिंहोन्हे पुछा था)

१. परिचय

जब कोई वास्तव में अपना व्यक्तित्त्व सुधारना चाहता है तथा अपने स्वभाव दोषों पर विजय प्राप्त करना चाहता है, तो व्यक्तित्त्व का स्वरूप तथा प्रत्येक व्यक्ति का व्यक्तित्त्व एवं मन किस प्रकार आध्यात्मिक आयाम से प्रभावित होता है, यह जानने से आरंभ करना उचित होगा । हमारी सभ्यता में समाज में एक लोकप्रिय व्यक्ति होनेका महत्त्व अधिक होने से व्यक्तित्त्व सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण हो जाता है । लोकप्रियता की इस संकल्पना की दृष्टि से देखा जाए, तो अधिकतर लोग व्यक्तित्त्व को एक दैवी देन के रूप में देखते हैं, जिससे व्यक्ति अपने आसपास के लोगों में प्रिय अथवा अप्रिय हो जाता है ।

. व्यक्ति का स्वभाव किस बात से निर्धारित होता है ?

अर्थात, वास्तव में स्वभाव क्या है और यह किन घटकों से बना होता है ?
मनुष्य को प्रकृति द्वारा मन तथा शरीर प्राप्त हुआ है, जिससे वह व्यवहार अथवा आचरण करता है । सोचना, भावुक होना इत्यादि मन की विशेषताएं है जबकि शारीरिक गतिविधियां, स्रावण, तापमान इत्यादि शरीर के गुण हैं । मन अथवा शरीर के वर्त्तन को तीन प्रकारों में वर्गीकृत किया गया है – प्रासंगिक, अस्थायी तथा पुनरावर्ती ।
  • प्रासंगिक वर्त्तन प्रासंगिक वर्त्तन अस्थायी होता है, उदाहरण के लिए जब एक विद्यार्थी परीक्षा आनेपर तनावग्रस्त हो जाता है, तब वह अपने मन के प्रासंगिक वर्त्तन को अनुभव करता है । दूसरी ओर खरोंचना, चलना इत्यादि शरीर के प्रासंगिक वर्त्तन के उदाहरण हैं ।
  • अस्थायी वर्त्तन अस्थायी वर्त्तन का अर्थ है वैसा वर्त्तन जो कुछ सप्ताहों से लेकर छः माह अथवा एक वर्ष से अल्प कालतक देखा जाए, उदाहरण के लिए जब कोई व्यक्ति अपने किसी प्रिय व्यक्ति की मृत्यु के उपरांत कुछ माह के लिए निराश हो जाता है । यहां निराशा का अनुभव करना उसके मन का अस्थायी वर्त्तन है ।
  • पुनरावर्ती वर्त्तन जब इसी प्रकार का व्यवहार वर्षों तक रहता है, तब इसे पुनरावर्ती वर्त्तन अथवा दीर्घकालीन वर्त्तन कहते हैं ।
प्रासंगिक तथा अस्थायी वर्त्तन व्यक्ति के जीवन को अत्यधिक मात्रा में प्रभावित नहीं करता; किंतु पुनरावर्ती अथवा दीर्घकालीन वर्त्तन जो स्वभाव का एक अविभाज्य अंग होता है, इससे व्यक्ति का जीवन अत्यधिक मात्रा में प्रभावित होता है ।

. स्वभाव को और अधिक समझने के संदर्भ में

किसी व्यक्ति में कोई स्वभावविशेष एक निश्‍चित कालावधि तक दिखाई नहीं देता, उसे उसके व्यक्तित्त्व के वर्णन करते समय ध्यान नहीं लिया जा सकता । यह भ्रामक हो सकता है, उदाहरण के लिए जब एक व्यक्ति के परिवारजनों की हत्या कर दी जाती है तो वह उस क्षण से प्रतिशोध लेने की स्थिति में चला जाता है । वही व्यक्ति यदि प्रतिशोध लेने का विचार करने के कुछ दिन अथवा कुछ सप्ताह के भीतर किसी मनोचिकित्सक के पास जाता है, तो उसके स्वभाव का वर्णन करते समय प्रतिशोध लेने की वृत्तिवाला, इस शब्द का प्रयोग नहीं किया जाएगा; क्योंकि उसके स्वभाव में यह वृत्ति दीर्घकाल से नहीं है । जब उसी व्यक्ति को कुछ वर्षों के उपरांत देखा जाए और तब भी उसमें प्रतिशोध का लक्षण देखा जाए, तो यह निश्‍चित हो जाता है कि प्रतिशोध लेने की वृत्ति उसके स्वभाव का ही एक अंग है । इसलिए यही अच्छा है कि इस बुरी वृत्ति को आरंभ में ही समाप्त किया जाए, अन्यथा यह अपराधी आचरण में परिवर्तित हो सकता है अथवा गंभीर प्रकरणों में समाज को हानि पहुंचा सकता है ।
स्वभाव की अनेक परिभाषाएं विविध मनोचिकित्सक तथा इस क्षेत्र के विशेषज्ञों द्वारा दी गई हैं, आप समझ ही सकते हैं ।
स्वभाव की विविध परिभाषाओं का सार यही है कि यह व्यक्ति के पुनरावर्ती अथवा दीर्घकालीन वर्त्तन को दर्शानेवाले गुणों का एक अनोखा मिश्रण है । यह मिश्रण मन तथा शरीर के सभी वर्त्तनों को समाहित करता है, जिन्हें हमने निम्नलिखित पांच वर्गों में वर्गीकृत किया है ।
अ. शारीरिक बनावट, गुणविशेष, स्वास्थ्य, क्षमता तथा व्यक्ति के मन में इन सबकी छवि
आ. स्वभावगत विशेषताएं (अर्थात व्यक्ति की मूल प्रकृति)जैसे शीघ्र क्रोध आना, भुलक्कड, अव्यवस्थित, गंभीर (अल्पभाषी), शंकालु, हठी, उदार, विश्‍वासपात्र, दिवास्वप्न देखनेवाला इत्यादि ।
इ. रुचि तथा अरुचि
ई. सहज प्रवृत्ति, इच्छाएं, तीव्र इच्छाएं (वासनाएं), लालसा, महत्त्वाकांक्षाएं, मनोकामनाएं इत्यादि ।
उ. बुद्धि, ज्ञान, धारणा, अनुचित धारणाएं, दृढ विश्‍वास, वृत्ति, मत, विचार, आदर्श इत्यादि ।

. स्वभाव को समझने हेतु व्यावहारिक दृष्टिकोण

स्वभाव केवल ऊपर बताए गए शीर्षक अंतर्गत विविध गुणों का कुल योग नहीं अपितु यह उन गुणों का एकत्रित क्रियाशील संगठन है, जो व्यक्ति को विशिष्ट तथा बारंबार होनेवाले वर्त्तन की रूपरेखा प्रदान करता है । किसी व्यक्ति के स्वभाव में विद्यमान विलक्षणता, जो उसके दैनिक जीवन की गतिविधियों को छः माह से एक वर्षतक प्रभावित कर रही है; उसका वर्णन करने के लिए हम प्रायः स्वभावविशेष, गुणविशेष तथा वृत्ति आदि शब्दों का एक ही अर्थ से प्रयोग करते हैं । इसमें प्रसांगिक तथा अस्थायी वर्त्तन सम्मिलित नहीं है, जो अल्प काल के लिए रहता है ।
यद्यपि एक व्यक्ति में सैकडों स्वभावविशेष हो सकते हैं, परंतु हमारा अनुभव है कि अधिकतर लोगों के प्रकरण में बीस से तीस गुण हैं; जिससे व्यक्ति के स्वभाव का अधिकांश भाग बनता है । उसके अन्य स्वभावविशेष, अन्य सामान्य लोगों के समान ही होते हैं । इसलिए उनका वर्णन करना अथवा ध्यान में रखना आवश्यक नहीं है ।

५. व्यक्तित्व परिवर्तनशील होना तथा सत्संग में रहने का महत्व

व्यक्तित्व निरंतर आठ अवस्थाओं से होकर निर्मित होता है । ये अवस्थाएं हैं शैशवास्था, बाल्यावस्था, खेलने की आयु, विद्यालयीन अवस्था, तरुणावस्था, यौवनावस्था, युवा वयस्कता, प्रौढावस्था तथा परिपक्वता । इस प्रकार व्यक्तित्व एक स्थिर घटना नहीं अपितु एक गतिशील प्रक्रिया है, जो गर्भधारण के क्षण से प्रारंभ होकर उसके अंतिम श्वास तक चलती रहती है । इसका अर्थ है कि समय के साथ व्यक्तित्व की कुछ विशेषताओं का महत्व घट सकता है, कुछ विशेषताएं विलुप्त हो सकती हैं, कुछ का महत्व बढ सकता है, कुछ का स्थान नर्इ विशेषताएं ले सकती हैं अथवा कुछ नए गुण निर्मित हो सकते हैं ।
जब एक बच्चा किशोर होता है, तब उसके व्यक्तित्व में परिवर्तन होता है । अर्थात वह किशोर प्रेम करता है, विवाह और शिशु के जन्म से, पंथ के परिवर्तन से अथवा राजनीतिक आस्था में परिवर्तन से उसके व्यक्तित्व में परिवर्तन होता है ।
अन्यों का अनुकरण करने से हममें अनेक गुण आते हैं । यदि किसी के पिता क्रोधी स्वभाव के हैं, तो उनका पुत्र भी उनका अनुकरण कर सकता है । यदि एक किशोर पैसे चोरी करनेवाले अथवा धूम्रपान करनेवाले दूसरे किशोर के संपर्क में आता है, तो वह भी दूसरे किशोर के व्यवहार का अनुकरण कर सकता है । यदि किसी र्इमानदार व्यक्ति के कार्यालय में काम करनेवाले अन्य सहकर्मी भ्रष्ट हैं तो र्इमानदार व्यक्ति भी उनके उदाहरण का अनुसरण कर भ्रष्ट हो सकता है । इस प्रकार व्यक्ति की संगति उसके व्यक्तित्व के विकास के लिए आवश्यक होती है । इसलिए साधकों की अच्छी संगति में अर्थात पूर्ण सत्य (सत्संग) का अनुसरण करनेवालों की संगति स्वस्थ व्यक्तित्व के विकास में अति महत्वपूर्ण मानी जाती है ।

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